मधुबनी ब्यूरो : प्रदीप कुमार नायक
राजनीति के गलियारे पर भ्रष्टाचार और दबंगई के दौर में लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ इस समय बेहद नाजुक दौर से गुजर रही हैं। शिव शंकर झा जैसे पत्रकार पर अपराधियों द्वारा चाकुओं से गोदकर उसके घर से महज चंद कदमों की दूरी पर हत्या कर दिया गया l यह हत्या नहीं बल्कि पत्रकारिता जगत, अभिव्यक्ति की आज़ादी और लोकतंत्र की हत्या हैं।
यहां बताते चले कि मामला मंगलवार देर रात की मुजफ्फरपुर जिले के मनियारी थाना क्षेत्र कि है जब जिले का एक पत्रकार शिवशंकर झा इसी थाना क्षेत्र के अपने घर के मारीपुर स्थित आवास की ओर लौट रहा था तब अचानक अज्ञात अपराधियो द्वारा उसके बाइक को घेर कर उस पर चाकुओं से दर्जनों वार किए गए जिसके बाद मामले की जानकारी पुलिस को हुई जिस पर पुलिस ने उस पत्रकार को घटना स्थल से लेकर एसकेएमसीएच पहुंचाया गया l जहा डाक्टरों की टीम ने उसे मृत घोषित कर दिया।जिसके बाद पुलिस वालो ने उसके घर वालो को सूचना दी।जिसके बाद पूरे अस्पताल परिषर में परिजनों की चीख पुकार गूंजने लगी।
घटना के संबंध में पुलिस ने बताया कि मामले की जानकारी मिली कि एक व्यक्ति को चाकुओं से हमला करके घायल कर दिया गया है।जिसके बाद वो लोग वहा पहुंचे और उसे अस्पताल में भर्ती कराया ,जहा उसे मृत घोषित कर दिया गया है।वही उन्होंने बताया की मृतक की पहचान पत्रकार शिवशंकर झा के रूप में हुई है।घटना के बाद पुलिस आगे कि जांच में जुट गई है। हालांकि घटना के बाद भी अस्पताल में एक भी वरीय अधिकारी नही पहुंचे थे यहां तक कि मनियारी थाना के एस एच ओ भी अस्पताल नही आए थे।
साथियों,जरा सोचिये फ़ासीवादी जल्लादों के हाथों आज निर्भीक, ईमानदार पत्रकार, बुद्धिजीवी, लेखकों पर प्राथमिकी दर्ज कर जेल के सलाखों के पीछे धकेल दिया जाता हैं, उनकी हत्या तक कर दिया जाता हैं।पत्रकार पर प्राथमिकी दर्ज, धमकियां देना तथा मौत के घाट उतार देना,यह पत्रकारिता जगत अभिव्यक्ति की आज़ादी और लोकतंत्र की हत्या हैं।आखिर पत्रकारों के साथ इतना जोर जुल्म क्यों किये जा रहे हैं ?
दुनियां के सबसे बड़े लोकतंत्र का नगाड़ा पीटने वाले देश में आखिर अभिव्यक्ति या तर्क की हत्या क्यों कि जा रही हैं ? क्योंकि पत्रकारों द्वारा अंधविश्वास, रूढ़ियों,भ्रष्टाचारियों, समाज के शोषक, अत्याचारों को जड़ से मिटाना चाहता हैं।जो कुछ स्वतंत्र पत्रकार, लेखक, मीडिया जनता के पक्ष में लिख या बोल रहे हैं, उनको चुप कराने के लिए वो भ्रष्टाचारी अनेक तीरों का इस्तेमाल कर रहे हैं।
पत्रकार बड़ी भोली हैं- दोस्तों , अतः आज हम पत्रकारों पर एक गंभीर व बड़ी जिम्मेवारी आ पड़ी हैं कि वर्षो बाद कु-व्यवस्था के खिलाफ चिंगारी को हम अपनी हथेलियों की ओट दे।ताकि हमारी स्वस्थ राजनीति, सामाजिक, मानसिकता एवं पत्रकारिता के साये तले यह स्वत्: स्फूर्त आंदोलन आग का रूप ले सके।हमें सजग रहते हुए इस आंदोलन को आगे बढ़ाना होगा।क्योंकि एक तरफ सापनाथ हैं तो दूसरी तरफ नागनाथ। वर्तमान परिस्थितियां हमें पुकार रही हैं।जरूरत हैं तो सिर्फ हमें आगे बढ़ने की, निश्चय ही हमारें पीछे परिवर्तनकारी जन सैलाब भी आयेगा।हमें आज नायक ढूढ़ने की जरूरत नहीं हैं।खुद में सुसुरत पड़ी जज्बा को जगाना भर हैं।फिर हर इकाई नेतृत्वकारी हो जायेगा।हमारी कई शहीद पत्रकार की आवाज़ आज भी गूंज रही हैं।अपने बन्द घरों के दरवाज़े खोलों और देखों एक साथ लाखों पत्रकार चौराहे पर आ मिलेंगे।
साथियों,अब समय आ गया हैं कि हम बोले ? और केवल बोले नहीं बल्कि धार्मिक मट्ठापन,फ़ासीवादी जल्लादों, अन्याय,अत्याचारों, भ्रष्टाचार, शोषण के खिलाफ सड़कों पर उतरे। इन अत्याचारों को या तो सड़कों पर जवाब देना होगा या दुबककर माँदो में बैठ जाना होगा।हमारें सामने दो विकल्प बचेंगे अंततोगत्वा और फिर ? चुनना तो हम सबकों पड़ेगा।
यह सर्व विदित सत्य हैं कि पत्रकार सुरक्षा कानून एक मात्र हथियार हैं, जिससे कलम के सिपाहियों की रक्षा हो सकती हैं।पत्रकार सुरक्षा कानून लागू करने के लिए हमें कोई ठोस कदम उठाने चाहिए।यह हमारें वजूद और अस्तित्व की लड़ाई हैं।चौथा स्तम्भ के वजूद को बचाने के लिए हम सभी पहल करें।दूसरी ओर कोई भी कानून क्यों नहीं आ जाय,जब तक हम सभी पत्रकार एक नहीं होंगे तब तक कुछ नहीं हो सकता।