CITIZEN AWAZ : अशोककालीन अभिलेखों की भाषा और लिपि पर द्वि-दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सिंपोजियम का उद्घाटन

दरभंगा : मारवाड़ी कॉलेज के संस्कृत विभाग, डॉ. प्रभात दास फाउंडेशन और ज्योतिर्वेद विज्ञान संस्थान, पटना के संयुक्त प्रयास से ‘अशोक के अभिलेखों की भाषा और लिपि का विश्लेषण’ विषयक अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में विद्वानों ने रखा ऐतिहासिक दृष्टिकोण

मारवाड़ी कॉलेज, दरभंगा के संस्कृत विभाग, डॉ. प्रभात दास फाउंडेशन, दरभंगा और ज्योतिर्वेद विज्ञान संस्थान, पटना के संयुक्त तत्वावधान में “अशोक के अभिलेखों की भाषा और लिपि का विश्लेषण” विषय पर द्वि-दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सिंपोजियम का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम कॉलेज की भाषा प्रयोगशाला में ऑनलाइन और ऑफलाइन मोड में संपन्न हुआ। इस ऐतिहासिक अवसर का उद्घाटन प्रधानाचार्य डॉ. कुमारी कविता की अध्यक्षता में हुआ।

सिंपोजियम के मुख्य अतिथि श्रीलंका के बौद्ध एवं पालि विश्वविद्यालय के वरीय आचार्य डॉ. कंदेगम दीप वंसालंकार थेरो ने अपने वक्तव्य में अशोक को भारत और श्रीलंका के बीच सांस्कृतिक और धार्मिक संबंधों के स्थापक के रूप में चित्रित किया। उन्होंने कहा कि अशोक के अभिलेख न केवल प्राचीन भारतीय इतिहास का अनमोल स्रोत हैं, बल्कि उनकी ब्राह्मी लिपि और प्राकृत भाषा में लिखे संदेश समाज और धर्म की परिधियों को भी पार करते हैं।

मुख्य वक्ता जेएनयू, नई दिल्ली के प्रोफेसर सी. उपेंद्र राव ने अशोक के अभिलेखों के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि इन अभिलेखों में अशोक की व्यक्तिगत और प्रशासनिक दृष्टिकोण का गहराई से अध्ययन किया जा सकता है। प्रोफेसर राव ने बताया कि अशोक के अभिलेखों में ‘देवानां प्रियो’ और ‘प्रियदर्शी’ जैसे उपाधियां उनके लोकप्रियता और प्रजा के प्रति उनकी निष्ठा का परिचायक हैं।

सिंपोजियम के सम्मानित अतिथि, डीएमसीएच के पूर्व अधीक्षक डॉ. सूरज नायक ने प्राचीन लिपियों के ‘डिकोडिंग’ के आधुनिक प्रयासों का उल्लेख करते हुए कहा कि डिजिटल फॉरेंसिक और भाषाई विश्लेषण ने इतिहास के इन अमूल्य दस्तावेजों को पुनर्जीवित करने में बड़ी भूमिका निभाई है।

विशिष्ट अतिथि, विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. आर. एन. चौरसिया ने कहा कि अशोक के शासनकाल के दौरान लागू की गई जनकल्याणकारी नीतियां आज के शासकों के लिए एक प्रेरणा हैं। उन्होंने कहा कि अशोक ने सड़क निर्माण, जल स्रोतों की व्यवस्था, सराय और अस्पताल जैसे कार्य करके समाज में एक नई परंपरा की शुरुआत की।

इस आयोजन में वक्ता और अन्य गणमान्य अतिथियों ने भी अपने विचार प्रस्तुत किए। अर्थशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ. विनोद बैठा, ज्योतिर्वेद विज्ञान संस्थान के निदेशक डॉ. राजनाथ झा, और संस्कृत विभागाध्यक्ष व संयोजक डॉ. विकास सिंह ने भी विभिन्न पहलुओं पर विचार रखे।

डॉ. कुमारी कविता ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि अशोककालीन अभिलेख न केवल इतिहास का प्रतिबिंब हैं, बल्कि वे भारतीय भाषाओं और लिपियों के विकास की नींव भी हैं। उन्होंने कहा कि अशोक की ब्राह्मी लिपि भारतीय लिपियों की जननी मानी जाती है और यह अध्ययन वर्तमान समाज के लिए अत्यधिक प्रासंगिक है।

डॉ. विकास सिंह ने अपने संचालन में कहा कि भारत को ज्ञान के क्षेत्र में पुनः विश्वगुरु बनने के लिए प्राचीन ज्ञान और परंपराओं का गहन अध्ययन करना होगा। उन्होंने यह भी बताया कि सिंपोजियम के दौरान कई तकनीकी सत्र आयोजित किए जाएंगे, जिनमें शोधार्थी और विद्वान अशोक के अभिलेखों और लिपियों पर विस्तृत चर्चा करेंगे।

सिंपोजियम का समापन धन्यवाद ज्ञापन के साथ हुआ, जिसमें डॉ. प्रभात दास फाउंडेशन के सचिव मुकेश कुमार झा ने भविष्य में भी ऐसे आयोजनों की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि इस प्रकार के कार्यक्रम शिक्षाविदों और शोधकर्ताओं के लिए प्रेरणास्त्रोत बनेंगे।

इस आयोजन में 120 से अधिक शिक्षकों, शोधार्थियों और विद्यार्थियों ने भाग लिया और भारतीय इतिहास व संस्कृति के इस अद्वितीय अध्याय पर अपने विचार साझा किए।

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