Site icon CITIZEN AWAZ

Sanshkrit University: सभी कर्मचारियों के साथ दरबार हॉल में चला मंथन, अक्षमता से कामचोरी ज्यादा घातक : कुलपति

कार्य संस्कृति व क्षमता को सुधारने का दिया टास्क,संस्कृत में बोलने के लिए कर्मियों को दिया जाएगा प्रशिक्षण

दरभंगा : एक सप्ताह पूर्व पदभार ग्रहण किये कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 लक्ष्मी निवास पांडेय ने बुधवार को मुख्यालय के दरबार हॉल में सभी कर्मचारियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि कार्य संस्कृति व काम करने की क्षमता में व्यापक सुधार की दरकार है। अपने लघुतम कार्यकाल में उन्होंने महसूस किया कि कार्यों के सम्पादन में यहां आपसी समन्वय व सामंजस्य का अभाव है। इसे विकसित करने की जरूरत है। साथ ही उन्होंने कहा कि सभी कर्मचारी काम करने में एक समान कुशल व दक्ष नहीं होते हैं। कई माध्यमों से इनकी क्षमता बढ़ायी जा सकती है। वहीं जो काम करना नहीं चाहते उसे कार्य संस्कृति व मनोदशा में बदलाव करना चाहिए। ध्यान रहे कि कामचोरी प्रायः अक्षमता से ज्यादा घातक होती है। इससे बचाव जरूरी है।
इसी क्रम में उन्होंने कहा कि यह भी सच है कि यहां कर्मियों की कमी है। संसाधनों का भी घोर अभाव है। छात्रों की संख्या भी कम है। ऐसे में लाजिमी है कि हमारे आंतरिक आर्थिक श्रोत भी कमजोर हैं। विश्वविद्यालय का कार्यक्षेत्र बड़ा होने के कारण कार्य निष्पादन में परेशानी भी आती होगी। बावजूद इसके सीमित संसाधनों में भी काम करने के तौर -तरीके में बदलाव कर हमसभी बेहतर परिणाम दे सकते हैं।
उक्त जानकारी देते हुए विश्वविद्यालय के पीआरओ निशिकांत ने बताया कि आज के प्रेरण कार्यक्रम में कुलपति प्रो0 पांडेय ने कर्मचारियों को अपनी भावना से पुचकारा व सहलाया भी। कई प्रेरक सुझावों के साथ साथ उन्होंने कथित भ्रष्टाचार पर भी जोरदार प्रहार किया। कार्यक्रम का लब्बोलुआब यह रहा कि नए परिवेश में नए अंदाज में निरपेक्ष भाव से काम करने की जरुरत है। ताकि विश्वविद्यालय का नाम सभी गर्व से ले सके।

कार्य संस्कृति में सुधार की दरकार

कुलपति ने कहा कि कोई भी संचिका तीन दिन से अधिक शाखा में नहीं रहनी चाहिए। चार से सात दिन अगर सञ्चिका अटकती है तो इसे विलम्ब माना जायेगा। इससे भी अधिक दिनों तक सञ्चिका लम्बित रहने पर सम्बन्धित शाखा को इसके लिए कारणों की स्थिति स्पष्ट करनी होगी। इसी क्रम में उन्होंने कहा कि बाहरी व्यक्तियों की दखलंदाजी तभी होती है जब आपमें कोई न कोई कमजोरी होती है। आप ऐसे व्यक्तियों से संस्कृत को बढ़ावा देने में मदद ले सकते हैं।विश्वविद्यालय हमसभी का परिवार है। ऐसे में हमें दूसरे को हस्तक्षेप करने का मौका नहीं देना चाहिए। वातावरण में बदलाव लाकर नई संस्कृति से कार्य करें। कार्य करने से ही कार्यों में निखार आता है। उन्होंने कहा कि कर्मचारियों की उचित मांगों का भी भरपूर ख्याल रखा जाएगा।

कोर्ट केस से बचने की सलाह

कुलपति ने कर्मचारियों से कहा कि आखिर कोई कोर्ट क्यों जाता है, इस पर गहराई से सोचें। इसके परिणामों को समझें। अदालतों में बढ़ती मुकदमों के लिए कहीं न कहीं हमसभी जिम्मेदार हैं। अगर भाई- भतीजावाद से दूर रहेंगे, समस्याओं को दूर करने के प्रति संवेदनशील होंगे तथा ससमय कार्यों का विधिवत निष्पादन करेंगे तो बेशक कोर्ट केस में कमी आएगी। स्वाभाविक है कि ऐसे में विश्वविद्यालय के समय व धन दोनों की बचत होगी। उन्होंने कहा कि जरा सोचिए, अदालती आदेश के बाद हमें उसे लागू करना ही होता है जबकि ऐसे अधिकांश कार्य बिना कोर्ट गए भी सम्भव हो सकते हैं।

बैच बनाकर कर्मचारी सीखेंगे संस्कृत

कुलपति ने कहा कि संस्कृत में बोलचाल को बढ़ावा देने के लिए कर्मचारियों का अलग अलग तीन-चार बैच बनाकर मुख्यालय में ही उसे प्रशिक्षित किया जाएगा। इसके लिए संस्कृत भारती से मदद ली जायेगी। उन्होंने इसकी जिम्मेदारी कुलसचिव डॉ दीनानाथ साह को सौंपते हुए कहा कि प्रशिक्षण कार्यक्रम एक एक घण्टा का होगा और यह ध्यान रखा जाएगा कि कार्यालयीय कार्य प्रभावित नहीं हो पाए। प्रशिक्षण के दौरान सम्भाषण पर जोर रहेगा।

इसी क्रम में कुलसचिव डॉ साह ने कर्मचारियों की तरफ से एवम अपनी तरफ से कार्य संस्कृति में बदलाव का पूरा भरोसा दिया। कहा कि कुलपति द्वारा बताए आज के कार्य मन्त्रों पर सभी अवश्य मंथन करेंगे। मौके कर्मचारी नेता सुनील सिंह ने कहा कि पदाधिकारियों की तरफ से भी समन्वय स्थापित होना चाहिए। धन्यवाद ज्ञापन भूसंपदा पदाधिकारी डॉ उमेश झा ने किया।

Exit mobile version