राष्ट्रीय मानव शोध संस्थान के तत्वावधान में कबीर आश्रम, सोनकी, दरभंगा में संत सम्मेलन, कबीर भंडारा सह गोष्ठी आयोजित
“सामाजिक समरसता निर्माण एवं आत्मबोध में संत कबीर का योगदान” विषय पर अनेक वक्ताओं ने रखे अपने- अपने विचार
दरभंगा : कबीरदास जयंती सप्ताह के अवसर पर दरभंगा के सोनकी स्थित कबीर आश्रम में राष्ट्रीय मानव शोध संस्थान के तत्वावधान में संत सम्मेलन, भंडारा सह गोष्ठी का आयोजन किया गया।
“सामाजिक समरसता निर्माण एवं आत्मबोध में संत कबीरदास का योगदान” विषयक संगोष्ठी में मिथिला विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभागाध्यक्ष प्रो मुनेश्वर यादव, पूर्व प्रधानाचार्य डॉ सत्यनारायण पासवान, सामाजिक चिंतक उमेश राय, मिथिला शोध संस्थान के निदेशक डॉ सुरेंद्र प्रसाद सुमन, विश्वविद्यालय संस्कृत विभाग के प्राध्यापक डा आर एन चौरसिया, पूर्व जिला शिक्षा पदाधिकारी दिनेश साफी, संस्कृत विश्वविद्यालय के साहित्य- प्राध्यापक डा अनिल बिहारी, पूर्व शिक्षक रामानंद दास तथा जेपी विश्वविद्यालय, छपरा के राजनीति विज्ञान के शिक्षक डा रामबाबू चौपाल आदि ने महत्वपूर्ण विचार रखें। अतिथियों का स्वागत फूल- माला से किया गया। संगोष्ठी में संजीत चौपाल, जीतन दास, रूपेश मंडल, राम स्वार्थ चौपाल, अचिंत कुमार दास, गोमू दास, रामाशीष दास, राम बहादुर दास, कुमार गौरव, दिव्य कुमार दिवाकर तथा सरोज कुमार आदि ने सक्रिय योगदान दिया।
संगोष्ठी का प्रारंभ अतिथियों द्वारा कबीरदास के चित्र पर माल्यार्पण से हुआ।
मुख्य अतिथि के रूप में प्रो मुनेश्वर यादव ने कहा कि शिक्षा से ही विकास का रास्ता बनता है। लोग अपने ज्ञान और आत्मविश्वास को बढ़कर ही सामाजिक परिवर्तन ला सकते हैं। ईश्वर समदर्शी होते हैं और वे हमेशा सभी मानवों पर कृपा ही करते हैं। कबीरदर्शन संपूर्ण समाज की समृद्धि के लिए है। मुख्य वक्ता के रूप में पूर्व जिला शिक्षा पदाधिकारी दिनेश साफी ने कहा कि कबीरदास सत्यमार्गी थे और उनकी वाणी समरसता का प्रतीक है। उन्होंने सामाजिक प्रपंच, कुकर्म, जाति- व्यवस्था, माया- मोह एवं मांसाहार भोजन आदि का घोर विरोध किया था। कबीर ने बहुजन समाज की वाणी को प्रस्तुत किया था।
विशिष्ट वक्ता डॉ सुरेंद्र प्रसाद सुमन ने कहा कि कबीर का संघर्ष आज भी चल रहा है। वे महान क्रांतिकारी कवि थे। उनके मार्ग पर चलना आसान नहीं है। कबीर ने दीन- दुखियों की मुक्ति की बात की थी। आज के दिन हमें कबीर के मत पर चलने का संकल्प लेना चाहिए। सामंतवादी व्यवस्था को बदले बगैर हमलोग कबीर के सपनों को साकार नहीं कर सकते। विशिष्ट वक्ता उमेश राय ने कहा कि कबीर गरीबों, पिछड़ों तथा दलितों के बीच सामाजिक क्रांति का बिगुल बजाया तथा मूर्ति पूजा का विरोध किया था। कबीर के लिए मानवता ही सबसे बड़ा धर्म रहा है। उन्होंने माता-पिता से आग्रह किया कि वे पाखंडों, कुरीतियों को छोड़कर अपने बच्चों की पढ़ाई- लिखाई पर ध्यान दें, तभी सामाजिक परिवर्तन होगा।
विशिष्ट अतिथि डॉ आर एन चौरसिया ने कहा कि कबीर की भाषा सरल और सुबोध थी जो आमलोगों तक आसानी से पहुंच पायी। कबीर एक ही ईश्वर को मानते थे और कर्मकाण्ड के घोर विरोधी थे। वे मूलतः समाजसुधारक कवि थे। उन्हें शांतिमय जीवन प्रिय था तथा वे सत्य, सदाचार, अहिंसा आदि गुणों के प्रशंसक थे। कबीर सिर्फ मानव- धर्म में ही विश्वास रखते थे। अपनी सरलता, साधु स्वभाव तथा संत प्रवृत्ति के कारण कबीरदास आज भी सर्वत्र समादरणीय हैं।
उन्होंने कहा कि कबीर दर्शन को अपनाकर सामाजिक समरसता का निर्माण तथा अपना आत्मबोध कर सकते हैं।
सहायक प्राध्यापक डॉ अनिल बिहारी ने कहा कि कबीर की वाणी मानव मूल्यों पर आधारित थी। उनके अनुसार प्रेम की भाषा वाला व्यक्ति ही असल पंडित हो सकता है। शिक्षक बलराम राम ने कहा कि कबीर की वाणी को अपनाने से हमारा जीवन धन्य- धन्य हो जाएगा। उन्होंने कबीर के विचारों को समाज में प्रचारित- प्रसारित करने का आह्वान किया।
अध्यक्षीय संबोधन में डॉ सत्यनारायण पासवान ने संगोष्ठी के लिए आयोजकों को बधाई देते हुए कहा कि मिथिला लोरिक, सलहेश, दीनाभद्री आदि की कर्मभूमि है। आज कबीर के दर्शन को समाज में फैलने के साथ ही उसपर चलने की जरूरत है। उन्होंने बच्चों की शिक्षा पर जोर देते हुए कहा कि हम अंधविश्वासों, कुरीतियों तथा छुआछूतों को दूर कर ही कबीर के सपनों के समाज का निर्माण कर सकते हैं।
आगत अतिथियों का स्वागत एवं कार्यक्रम का संचालन संयोजक डॉ रामबाबू चौपाल ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन रामानंद दास ने किया।