सेमिनार में डॉ घनश्याम, डॉ रीतेश, डॉ विकास, डॉ चौरसिया, डॉ ममता, डॉ साधन, मुकेश झा, डॉ राम नारायण, डॉ कुमारी पूनम एवं रितु कुमारी आदि ने रखे विचार
उद्घाटन एवं तकनीकी दो सत्रों में आयोजित सेमिनार में पत्र वाचन करने वाले तथा सहभागी 70 से अधिक शिक्षकों, शोधार्थियों एवं विद्यार्थियों को दिए गए प्रमाण पत्र
दरभंगा : ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग तथा डॉ प्रभात दास फाउंडेशन, दरभंगा के संयुक्त तत्वावधान में “भारतीय ज्ञान- परंपरा और बौद्धधर्म- दर्शन” विषयक राष्ट्रीय सेमिनार पीजी संस्कृत विभाग के सभागार में आयोजित किया गया। उद्घाटन एवं तकनीकी- दो सत्रों में आयोजित सेमिनार में पत्र वाचन करने वाले तथा सहभागी रहे 70 से अधिक शिक्षकों, शोधार्थियों, विद्यार्थियों एवं संस्कृति प्रेमियों को प्रमाण पत्र प्रदान किए गए।
मुख्य अतिथि के रूप में संस्कृत विश्वविद्यालय के साहित्य के प्राध्यापक डॉ रीतेश कुमार चतुर्वेदी ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 की विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि इस शिक्षा नीति में भारतीय संस्कार, संस्कृति, नीति, राष्ट्रीयता आदि भारतीय ज्ञान- परंपरा का विशेष महत्व दिया गया है। भारतीयता को हम सिद्धांत एवं आचरण दोनों रूपों में ग्रहण करते हैं जो मानवता की रही है, जिसमें आत्मवत् सर्वभूतेषु.. तथा वसुधैव कुटुंबकम्…आदि की भावना निहित है। ज्ञान ही हमें पशु से विशिष्ट बनाता है, जिसकी पृष्ठभूमि व्यावहारिक होनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि बौद्धधर्म- दर्शन में त्यागपूर्वक भोग की भावना रही है। सभी प्राणियों के प्रति दया की भावना हम बौद्ध धर्म से ही सीखे हैं, क्योंकि हिंसा के कारण अनेक कुरीतियों उत्पन्न हुई, जिन्हें बौद्ध धर्म के आगमन से समाप्त किया गया। बौद्धधर्म- दर्शन हमें जीवन जीने की कला तथा मानव- कल्याण की भावना को जागता है जो भारतीय ज्ञान- परंपरा का महत्वपूर्ण भाग है।
मुख्य वक्ता के रूप में मारवाड़ी कॉलेज के संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ विकास सिंह ने कहा कि बौद्धधर्म- दर्शन अति विस्तृत एवं मध्यम मार्गी है, जिसका भारतीय ज्ञान- परंपरा में काफी योगदान रहा है। बौद्ध- परंपरा में पांच प्रमुख परंपराएं हैं, जिनमें शास्त्रार्थ की प्रमुखता रही है। बुद्ध में 32 महापुरुष- लक्षण थे। बुद्ध दुःखवादी नहीं, बल्कि दुःख का कारण बताकर सुख की ओर ले जाने वाला दर्शन है।
विशिष्ट अतिथि के रूप में संस्कृत विश्वविद्यालय के व्याकरण की प्राध्यापिका डॉ साधना शर्मा ने बौद्ध धर्म- दर्शन की विस्तार से चर्चा करते हुए उसके महत्व एवं विशेषताओं का उल्लेख किया। बौद्धशास्त्र परिपूर्ण है, जबकि इसका साहित्य बुद्धि निर्माण करने में सक्षम है। उन्होंने कहा कि बौद्ध दर्शन सभी शास्त्रों को अलंकृत किया है। संस्कृत में ज्ञान का कोष है। इसी कारण भारत में ज्ञान की विपुलता रही है जो व्यक्ति को पूर्ण विकास करने में समर्थ है।
विशिष्ट वक्ता के रूप में फाउंडेशन के सचिव मुकेश कुमार झा ने कहा कि भारतीय ज्ञान- परंपरा अति समृद्धि एवं तर्क- वितर्क की रही है, जिसमें सदा परिवर्तन और विकास होता रहा है। बौद्ध धर्म हमें बताता है कि संसार में दुःख है, जिसका कारण है और उसका निदान भी है। अध्यक्षीय संबोधन में विभागध्यक्ष डॉ घनश्याम महतो ने सेमिनार के विषय को विस्तृत एवं सारगर्भित बताते हुए कहा कि अनेक विदेशी आक्रमणकारियों के आने के बाद भी भारतीय ज्ञान- परंपरा कभी समाप्त नहीं हुई। यह परंपरा परमानंद की प्राप्ति करने में समर्थ है। उन्होंने कहा कि यूजीसी ने सभी विश्वविद्यालयों के सिलेबसों में काम से कम 5% भारतीय ज्ञान- परंपरा से रखना का निर्देश दिया है।
आगत अतिथियों का स्वागत एवं विषय प्रवेश कराते हुए सेमिनार के संयोजक डॉ आर एन चौरसिया ने बौद्धधर्म- दर्शन को आज अधिक प्रासंगिक मानते हुए मानवता की समानता एवं कल्याणार्थ बताया। समावेशी एवं सार्वभौमिक प्रकृति वाला मध्यमार्गी बौद्धधर्म- दर्शन भारतीय ज्ञान- परंपरा के निर्माण का बृहद एवं मूल्यवान भंडार एवं समृद्ध धरोहर है। उन्होंने कहा कि बौद्धों ने भारतीयों को एक लोकप्रिय धर्म दिया, जिसे समझना और पालन करना काफी सरल है। यह स्वस्थ जीवन शैली को बढ़ावा देने से जुड़ा है, जिसके कारण सनातन धर्म में भी काफी सुधार हुआ।
जेआरएफ एवं संस्कृत शोधार्थी रीतु कुमारी के संचालन में आयोजित उद्घाटन सत्र में धन्यवाद ज्ञापन करते हुए विभागीय प्राध्यापिका डॉ ममता स्नेही ने कहा कि बौद्धधर्म- दर्शन सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय है जो हमें अपने दुःखों को दूर कर मोक्ष प्राप्ति का मार्ग बतलाता है। उन्होंने कहा कि बौद्ध भारतीय दर्शनों का विरोध नहीं करता, बल्कि उसका पूरक है जो काफी उदार भी है।
वहीं आरबीएस कॉलेज, अंदौर, समस्तीपुर के संस्कृत विभागाध्यक्ष डा राम नारायण राय की अध्यक्षता में आयोजित तकनीकी सत्र में 20 से अधिक प्रतिभागियों ने अपना पत्र वाचन किया। तकनीकी सत्र में धन्यवाद ज्ञापन डीबीकेएन कॉलेज, नरहन, समस्तीपुर की संस्कृत प्राध्यापिका डॉ कुमारी पूनम राय ने किया।
आगत अतिथियों का स्वागत पौधा प्रदान कर किया गया। सेमिनार में डॉ प्रियंका राय, डॉ संजीव शाह, डॉ संजीत राम, डॉ राजीव कुमार, डॉ रवि राम, डॉ संजीव कुमार, डॉ विरोध राम, डॉ अवधेश कुमार, डॉ शीला यादव सहित 70 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया, जिन्हें अतिथियों के हाथों प्रमाण पत्र प्रदान किया गया।